अगर आज कोई हिंदुस्तान की सत्ता को हिला देने का दम रखता है थो वो है अन्ना हजारे, इतनी हरकत मे सत्ता तभी आती है जब कोई सड़क पर निकल पड़ता है और करवा बनने लगता है, ऐसा ही एक इंसान 1975 मे गाँधी मैदान बिहार मे निकल गया था, वो थे जेपी. आज अन्ना हजारे सड़क पर उत्तर आये है, फर्क इतना की उस वक़्त आपातकाल का दौर था आज भ्रष्टाचार का है.
जब जेपी आये थे सड़क पर जब उनकी उम्र भी 72 साल थी और आज जो आदमी सड़क पर है उस की उम्र भी 73 साल है. आज परिश्तितियाँ चाहे कितनी अलग हो मगर सवाल सरकार का है. अन्ना हजारे जिस करवा के दम पर सरकार को घेरने मे लगे हुए है उसमे उनको सफलता भी मिलती हुई दिखाई दे रही है. डॉ मनमोहन सिंह ने जिन 8 नामो को जन लोकपाल विधेयक के लिए चुना है वो उतने ही दागी है, जितने 2G स्पेक्ट्रुम मे ए राजा को माना जा रहा है. शरद पवार को जन लोकपाल विधेयक में किस आधार मे जगह मिली, यह सोचना जनता की सोच से परे है. जब की यह पहले से ही साबित हो चूका है बलवा और शरद पवार के क्या रिश्ते थे. पि चिदंबरम का नाम भी सीवीसी मे आ चूका है.
जब भारत का सविधान बना तो डा॰ राजेन्द्र प्रसाद उस को लेकर गाँधी जी के पास लेकर गए, और गांधीजी ने उनसे पूछा था इस मे गरीबो के लिए कुछ है क्या. आज अगर हिंदुस्तान की तस्वीर को देखा जाये थो उस मे गरीबी भी है और राजनीति भी है, भ्रष्टाचार में डूबे नेताओं और नौकरशाहों को आम जनता की ताकत कसने के लिए अब मशहूर समाजसेवी अन्ना हजारे ने आंदोलन छेड़ दिया है. वो जनता को जगाने के लिए मंगलवार से राजधानी के जंतर मंतर पर आमरण अनशन पर बेठे हैं. अन्ना हज़ारे और समाजसेवी देश में जन लोकपाल नाम की एक ऐसी संस्था चाहते हैं, जो एमपी से लेकर पीएम तक सबको भ्रष्टाचार की सज़ा देने में सक्षम हो. अन्ना हजारे सरकार की जी ओ एम ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर कमिटी से इस लिए नाराज़ है क्यूकि उस मे जो मिनिस्टर को जगह दी गयी है वो पहेले से ही भ्रष्टाचार के आरोप मे शामिल है. ऐसे मे वो जी ओ एम की नुमंदी कैसे कर सकते है.
लोकपाल विधेयक पहेले ही 8 बार संसद मे पेश हो चूका है, नेहरु ने 1960 के दशक मे इस विधेयक की पेशकश संसद मे पहली बार की उस के बाद 1966, 1968, 1969, और 2001 मे इस पर चर्चा हुई, 2008 मे ये विधेयक फिर से संसद मे लाया गया मगर बहस बेनतीजा ही रही. अन्ना हजारे की मांग पर पी एम पहले ही सवाल उठा चुके है यह कहते हुए कि ऐसा कोई विधेयक आज तक कभी हिंदुस्तान की संसद मे पारित नहीं हुआ की जिसमे जनता भी बराबर की भागीदार हो, मगर अन्ना हजारे पहले ही महाराष्ट्र मे एक साझा कानून ला चुके है जिस मे समाजसेवी भी उतने ही दमदार है जितनी वहां पर सरकार है.
आज अन्ना हजारे जब सड़क पर आम लोगो के साथ आये तो सरकार की तरफ से भी हलचल तेज हुई. 1975 मे जब जेपी सड़क पर उतर आये थे तो सरकार पलट गयी थी. आज 40 पार कर चुके लोगो की आँखों मे जेपी का जोश होगा और 70 पार कर चुके लोगो की आँखों मे गाँधी जी याद होगी. जन लोकपाल विधेयक 42 साल से संसद के आसपास घूमता हुआ ही दिखाई दिया. आज अन्ना हजारे आमरण अनशन मे बैठ गए है, जिस के यह मायने माना जा सकता है कि अरब देशो से बदलाव की आंधी यूरोप और लीबिया जैसे देशो से होते हुए सीधा हिंदुस्तान मे आ चुका है. जिसमे हिंदुस्तान का जवान और बूढ़ा दोनों ही शामिल हो चूका है. अन्ना हजारे को पुरे हिंदुस्तान से पूरा समर्थन मिल रहा है अब देखाना ये होगा की सरकार जन लोकपाल विधेयक
पारित करती है या ये अनशन कोई नया रूप लेता है.
---रोहित ध्यानी---
लेखक इंडियन इंस्टिट्यूट
ऑफ़ जर्नालिस्जम एंड न्यू मीडिया
बेंगलुरु से पत्रकारिता की पढाई कर रहे हैं
An article in http://networkedblogs.com/gp6Wd
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